इस दुनिया में सभी दौड़ना चाहते है सबसे आगे भागना चाहते है, सच कहूँ तो बिना पंखों के उड़ना चाहते है। मगर ! साथ-साथ चलने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है। कभी आगे चले तो पथ प्रदर्शन करे। साथ चले तो हमदर्द और हमसफ़र बने ।
पीछे चले तो छतरी बने कवच बने । पंछियों का जोड़ा कितना प्यारा लगता है ना। मगर पिंजरे में नहीं उन्मुक्त गगन में उड़ते हुए. पेड़ो की डाल पर चहचहाते हुए, छत की मुंडेर पर गीत खुशी के गाते हुए । मगर कब तक बस तब तक जमाने की नजर ना लगे जब तक । एक पंछी का जोड़ा बड़ा प्यारा है। उनकी जुगलबंदी अविस्मरणीय है।
आपसी समझबूझ तो अद्वितीय । मगर उस नन्ही चिड़ियाँ जो अब थोड़ी बड़ी दिखती है कि एक अलग कहानी थी। वो रहना तो अपने प्रियतम के साथ चाहती है तन-मन से मगर उसका सौदा पहले से ही कोई और कर बैठा है मजबूरियों के हाथ। फिर भी उसने अपने मन को रोका नहीं ,ऐसा नहीं कि उसे समाज के लाज-लिहाज का डर नहीं पर ये चारदीवारी उसका सही घर नहीं। वो तो आसमान को भी भेद दे ऐसा उसमें बल है तेज है । उसने पहले तो अपने हाल और हालात को अपने जोड़ीदार से छुपा कर रखा ।
घुट-घुट कर सभी जज्बात को दबा कर रखा। फिर भी बच के बचा के सबसे छिपा कर उससे मिलती रही। एक कली जो बस प्रकाश की मोहताज थी वो हर पल खिलती रही । एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उसे लगा अगर वो कल ना रही और अपनी जान से ना मिल सकी कुछ ना बता सकी तो उसका क्या होगा जो दिन-रात बस उसका इंतजार करता है। उसे पता था कि अगर वो सबकुछ बता दे फिर भी वो परिन्दा उसके साथ ही होगा । मगर इस उधेड़-बुन में कुढ़ती रही कि कैसे बताये क्या-क्या बताये कहाँ से बताये और कहाँ तक बताये। फिर भी उस शाम उसने अपने दिल में दबे सारे राज खोल डाले । आखिर इतना बोझ लेकर कब तक भला उड़ने की कोशिश करती।
उसकी दास्तान सुनकर उस परिंदे की आँखें नम हो गई। उसने कहा दोष आपका नहीं बस वक़्त और हालात का है। हम कल भी जैसे साथ थे आज भी वैसे है और कल भी होंगे। जब तक कि इस नश्वर शरीर में साँस बाकी है। वो चिड़ियाँ अब खुद को पिंजरे में भी आजाद महसूस करने लगी क्योंकि उसकी जिंदगी में कोई है जिससे वो सबकुछ बता सकती है । प्रेम कहाँ और कब किसी पाबंदी का मोहताज रहा है । ये तो दरिया है जिसे हर हाल में बह कर सागर की बाहों में समाना है। अब आलम ये है कि दोनों दूर होकर भी बेहद करीब है, कितने खुशनसीब है, जो इस मतलब की दुनिया में भी निःस्वार्थ प्रेम करते है। एक-दूजे की आँखों में रोते है. एक-दूसरे के होठों पर मुस्कुराते है। साथ सोते है साथ-साथ जगते है। साथ खाते है साथ गाते है।
उनके ये अंदाज मन को भाते है। वो दोनों अलग-अलग रह कर भी हर पल इतने पास है जैसे दो जिस्म में एक साँस है। अकेले दौड़ने वालों को भला क्या पता ? कि जुगलबंदी में कभी साथ-साथ तो कभी पीछे चलने का भी अपना मजा है । एहसास SwAsh 💖
shabdon_ke_ashish ✍️
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