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देश बंद था जब चारदीवारी में 
परेशान थे सब महामारी से 
कम ही सब मुस्काते थे 
जब खुद से ही बतियाते थे 
चौखट के भीतर जीना था 
वही खाना था वही पीना था
चारों ओर निराशा थी 
ना चंचल मन में आशा थी 
मैं शायर था तन्हाई का
मिलन की गजल मैं गा बैठा 
जब तुमने दिल पे दस्तक दी 
मैं कल को पल बना बैठा 
मन से मनमीत मैं पा बैठा 
मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा 
मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा ….❤️
 
ना सुबह को कोई जल्दी थी 
शाम को भी आराम ही था 
किताबों के बीच फोन रखा 
और मुझे क्या काम ही था 
जब भी कम्पन्न सी होती थी 
भागे-भागे से आते थे 
पन्नों के दर्पण में पड़ी तुम
फिर मन से मन को मिलाते थे
घड़ियां कट रही थी कभी इंतजार में तो कभी चित्रहार में 
एक अलग ही मजा था इस अनकहे इजहार में दबे-दबे से इकरार में 
पड़ने लगे थे दो दिल एक-दूजे के प्यार में 
बस बातों और अल्फाजों से ख्वाब को अपना बना बैठा
रफ्ता-रफ्ता हौले-हौले दो जिस्म एक जां बना बैठा
मिले बिना भी मिल जाने कि नई एक रीत चला बैठा
मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा 
मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा ….🧡
 
कब मिलेंगें कहाँ मिलेंगें कैसे मिलेंगें कितना मिलेंगे !
लोगों के बीच ये बस फिजूल की बहस है
मिलना ही एक उद्देश्य है अगर तो फिर ये प्रेम नहीं हवस है
जमाने को पैमाने में मैं प्रेम की माप बता बैठा 
मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा
मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा …..💚
 
       🌳
🌱SwAsh🌱
 
❤️💙💖🧡💚
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