Skip to main content

वह मिलेगी
किसी रंग में
जिसे उकेरता अचानक मैं
इक कोरे कागज में
वह मिलेगी
जैसे चिड़िया
जो चहचहाती है
रोज सुबह छत की मुंडेर पर
वह मिलेगी
जैसे मस्ती में खिंची रेखा
जिससे बनता है उसके नाम का पहला अक्षर
वह मिलेगी
जैसे पानी की इक बूंद
जिस्म में दे जाती जो ठंडक
हां
वह मिलती है मुझे
सूर्य की पहली किरण के रुप में
जिसे निहारता हूं मैं रोज सुबह ॥॥

0
0

Leave a Reply