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तुम बिन बैठा हूं नदी के किनारे में,
करता इंतजार किसी का,
जैसे करता था कभी आपका।
आपको आता देख फूला ना समाता था मैं,
अब यह रास्ता वीराना है,
मगर आज भी नदी का यह किनारा मेरा आशियाना है।
आपको आते देख उमंगें उठती थी मेरी,
मेरे दिल को छू लेती थी हंसी तेरी।
मगर आज यह किनारा सूना है।
इंतजार तो आज भी है मुझे आपका,
पर मुझे भी पता है आप आओगे नहीं।
अतीत की स्मृतियाँ दिल में उमंगें पैदा करती हैं,
इन सूनी राहों को देखकर मेरी तमन्नाएं डरती हैं।
ये किनारा कभी मेरी – तेरी मिलन स्थली थी,
आपके आने से जिंदगी खुशियों से भरी थी।
तुम बिना बैठा हूं इंतजार में किसी के,
पर क्या वह आएगी।

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