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तुच्छ होते हैं कौन लोग
जो न किसी को भाते हैं
तुच्छ लोग जमाने और तकदीर दोनों द्वारा बनाए जाते हैं।

दरिद्र हैं तुच्छ अमीरों के लिए
सज्जन होते हैं तुच्छ मूर्खों के लिए
दरिद्र और सज्जन की एक ही गति है
अपने को श्रेष्ठ जानना अमीरों और मूर्खों की मति है।

कुछ तुच्छ जाति और नस्ल बनाती है
श्रेष्ठ और तुच्छ की जननी मनोविकार कहलाती है।
होते हैं सब जन एक ही माँ के बेटे,
कोई दो न एक समान होते हैं।

तुच्छ और श्रेष्ठ सब मन का अहंकार है,
सब नर एक ही भाग्य को प्राप्त होते हैं।
जो नर अपने को श्रेष्ठ और हीन को तुच्छ जाने,
सज्जन जन उसे अपनी दृष्टि में मूढ़ माने।

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