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वह मिलेगी
किसी रंग में
जिसे उकेरता अचानक मैं
इक कोरे कागज में
वह मिलेगी
जैसे चिड़िया
जो चहचहाती है
रोज सुबह छत की मुंडेर पर
वह मिलेगी
जैसे मस्ती में खिंची रेखा
जिससे बनता है उसके नाम का पहला अक्षर
वह मिलेगी
जैसे पानी की इक बूंद
जिस्म में दे जाती जो ठंडक
हां
वह मिलती है मुझे
सूर्य की पहली किरण के रुप में
जिसे निहारता हूं मैं रोज सुबह ॥॥

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