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कभी पछुआ जोर लगाती है 
तो कभी पुरवा शोर मचाती है 
जिन्दगी का मतलब बहना है 
ये पाठ हमें सिखलाती है 

ख़ामोश हो जाना है सबको एक दिन
इस मौन से ये कब घबराती है 
कभी सर्दी में ठिठुराती है 
तो कहीं गर्मी से जलाती है 

कभी चल-चल के सताती है 
तो कभी ना चले तो रुलाती है 
किसी सुबह ख्बाब से जगाती है
तो किसी शाम को दिल बहलाती है 

कभी तन्हाई में सिसकाती है
तो कभी महफ़िल में आग लगाती है 
कभी बादल संग रेस मचाती है 
तो कभी बारिश में नहाती है 

कभी सूरज को आँख दिखाती है 
तो कभी चंदा में शर्माती है 
कभी अधरों पे फड़फड़ाती है 
तो कभी सीने में आह दबाती है 

कभी पायल बन झनझनाती है 
तो किसी आँचल को लहराती है 
कभी आशिक़ को मचलाती है 
तो कभी शायर के शब्द सजाती है 

कभी सजे हुए को बिखराती है 
तो कभी किसी बिखरे को सजाती है
कभी कोरे कागज पे कोई किस्सा बन जाती है 
तो कभी किसी किस्से को ही कोरा कर जाती है 

कभी तितली के संग रंग लाती है 
तो कहीं जुगनुओं में जगमगाती है 
कभी चिड़ियों संग चहचहाती है 
तो किसी झरने के संग गाती है 

कभी जुल्फों को सहलाती है 
तो कभी गालों को छू जाती है 
कोई संदेश कहीं ले जाती है 
तो कभी याद किसी की लाती है 

कभी हौले-हौले से सरसराती है 
और सूखे पत्तों में खड़खड़ाती है 
कभी सुराख से गुजर कर खौफ बन जाती है
तो कभी खिड़की पे हसीं दस्तक दे जाती है

ये हवायें सिर्फ बहती ही नहीं बल्कि अपने साथ बहाती है 
किसी को बस बाहर से तो किसी को भीतर तक झकझोर जाती है 
कभी आँखों की नमी से जिस्म का दामन भिगाती है
तो कभी रूह को रूह से मिलाती है 

जिन्दगी चाहे जैसी भी हो जिस मोड़ पे भी हो झोंकों के साथ थोड़ी-बहुत तो बदल ही जाती है 

कोई साथ चले या फिर ठहर जाये कहीं

आती-जाती ये सबके दिल को भाती है …

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